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शे'र
निकल कर ज़ुल्फ़ से पहुँचूँगा क्यूँकर मुसहफ़-ए-रुख़ परअकेला हूँ अँधेरी रात है और दूर मंज़िल है
अकबर वारसी मेरठी
शे'र
वो ऐ 'सीमाब' क्यूँ सर-ग़श्तः-ए-तसनीम-ओ-जन्नत होमयस्सर जिस को सैर-ए-ताज और जमुना का साहिल है
सीमाब अकबराबादी
शे'र
ये आदाब-ए-मोहब्बत है तिरे क़दमों पे सर रख दूँये तेरी इक अदा है फेर कर मुँह मुस्कुरा देना
अब्दुल हादी काविश
शे'र
बाग़ से दौर-ए-ख़िज़ाँ सर जो टपकता निकलाक़ल्ब-ए-बुलबुल ने ये जाना मेरा काँटा निकला
मुज़्तर ख़ैराबादी
शे'र
बाग़ से दौर-ए-ख़िज़ाँ सर जो टपकता निकलाक़ल्ब-ए-बुलबुल ने ये जाना मेरा काँटा निकला
मुज़्तर ख़ैराबादी
शे'र
वो मेरे सर को ठुकराते हैं सज्दों से ख़फ़ा हो करजबीं से मेरी पैवस्तः है उन का आस्ताँ फिर भी
सीमाब अकबराबादी
शे'र
सर-ओ-बर्ग-ए-ख़ुशी ऐ गुल-बदन तुझ बिन कहाँ मुझ कोगुलिस्तान-ए-दिल आया फ़ौज-ए-ग़म की पाएमाली में
मीर मोहम्मद बेदार
शे'र
दश्त-नवर्दी के दौरान 'मुज़फ़्फ़र' सर पर धूप रहीजब से कश्ती में बैठे हैं रोज़ घटाएँ आती हैं
मुज़फ़्फ़र वारसी
शे'र
इ’श्क़ में तेरे कोह-ए-ग़म सर पे लिया जो हो सो होऐ’श-ओ-निशात-ए-ज़िंदगी छोड़ दिया जो हो सो हो
शाह नियाज़ अहमद बरेलवी
शे'र
इ'श्क़ में तेरे कोह-ए-ग़म सर पे लिया जो हो सो होऐश-ओ-निशात-ए-ज़िंदगी छोड़ दिया जो हो सो हो
शाह नियाज़ अहमद बरेलवी
शे'र
साज़-ओ-सामाँ हैं मेरी ये बे सर-ओ-सामनियाँबाग़-ए-जन्नत से भी अच्छा है ये वीराना मिरा
कैफ़ी हैदराबादी
शे'र
मिरा सर कट के मक़्तल में गिरे क़ातिल के क़दमों परदम-ए-आख़िर अदा यूँ सज्दा-ए-शुकराना हो जाए
बेदम शाह वारसी
शे'र
मिरा सर कट के मक़्तल में गिरे क़ातिल के क़दमों परदम-ए-आख़िर अदा यूँ सज्दा-ए-शुकराना हो जाए
बेदम शाह वारसी
शे'र
अदब से सर झुका कर क़ासिद उस के रू-ब-रू जानानिहायत शौक़ से कहना पयाम आहिस्ता आहिस्ता