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शे'र
निकल कर ज़ुल्फ़ से पहुँचूँगा क्यूँकर मुसहफ़-ए-रुख़ परअकेला हूँ अँधेरी रात है और दूर मंज़िल है
अकबर वारसी मेरठी
शे'र
अब्दुल हादी काविश
शे'र
ज़ब्ह करती है जुदाई मुझ को उस की सुब्ह-ए-वस्लख़्वाब से चौंक ऐ मोअज़्ज़िन वक़्त है तकबीर का
अर्श गयावी
शे'र
हम वस्ल में ऐसे खोए गए फ़ुर्क़त का ज़माना भूल गएसाहिल की ख़ुशी में मौजों का तूफ़ान उठाना भूल गए
कामिल शत्तारी
शे'र
ऐ’श-ओ-इश्रत वस्ल-ओ-राहत सब ख़ुशी में हैं शरीकबे-कसी में आह कोई पूछने वाला नहीं
मिरर्ज़ा फ़िदा अली शाह मनन
शे'र
इस आईना-रू के वस्ल में भी मुश्ताक़-ए-बोस-ओ-कनार रहेऐ आ’लम-ए-हैरत तेरे सिवा ये भी न हुआ वो भी न हुआ