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शे'र
निकल कर ज़ुल्फ़ से पहुँचूँगा क्यूँकर मुसहफ़-ए-रुख़ परअकेला हूँ अँधेरी रात है और दूर मंज़िल है
अकबर वारसी मेरठी
शे'र
कब दिमाग़ इतना कि कीजे जा के गुल-गश्त-ए-चमनऔर ही गुलज़ार अपने दिल के है गुलशन के बीच
मीर मोहम्मद बेदार
शे'र
सँभल जाओ चमन वालो ख़तर है हम न कहते थेजमाल-ए-गुल के पर्दे में शरर है हम न कहते थे
वासिफ़ अली वासिफ़
शे'र
अदा ग़म्ज़े करिश्मे इश्वे हैं बिखरे हुए हर-सूसफ़-ए-मक़्तल में या क़ातिल है या अंदाज़-ए-क़ातिल है
अकबर वारसी मेरठी
शे'र
अदा ग़म्ज़े करिश्मे इश्वे हैं बिखरे हुए हर-सूसफ़-ए-मक़्तल में या क़ातिल है या अंदाज़-ए-क़ातिल है