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शे'र
निकल कर ज़ुल्फ़ से पहुँचूँगा क्यूँकर मुसहफ़-ए-रुख़ परअकेला हूँ अँधेरी रात है और दूर मंज़िल है
अकबर वारसी मेरठी
शे'र
शम्अ' के जल्वे भी या-रब क्या ख़्वाब था जलने वालों कासुब्ह जो देखा महफ़िल में परवाना ही परवाना था
बेदार शाह वारसी
शे'र
या तू ने नज़र ख़ीरा कर दी ऐ बर्क़-ए-तजल्ली या हम हीदीदार में अपनी आँखों का एहसान उठाना भूल गए
कामिल शत्तारी
शे'र
फ़स्ल-ए-गुल आई या अजल आई क्यों दर-ए-ज़िंदाँ खुलता हैया कोई वहशी और आ पहुंचा या कोई क़ैदी छूट गया
फ़ानी बदायूँनी
शे'र
शोमी-ए-क़िस्मत कहें या ख़सलत-ए-इंसाँ इसेआ के क़ाबिज़ बज़्म-ए-हस्ती पर ये मेहमाँ हो गया
गुरबचन सिंह दयाल
शे'र
अकबर वारसी मेरठी
शे'र
ख़ुदा-या ख़ैर करना नब्ज़ बीमार-ए-मोहब्बत कीकई दिन से बहुत बरहम मिज़ाज-ए-ना-तवानी है
जिगर मुरादाबादी
शे'र
बाग़-ए-जहाँ के गुल हैं या ख़ार हैं तो हम हैंगर यार हैं तो हम हैं अग़्यार हैं तो हम हैं
ख़्वाजा मीर दर्द
शे'र
हम में और उन में मोहब्बत या ख़ुदा ऐसी तो होजो सुने वो बोल उट्ठे मेहर-ओ-वफ़ा ऐसी तो हो
कैफ़ी हैदराबादी
शे'र
अफ़क़र मोहानी
शे'र
हर ज़र्रा उस की मंज़िल सहरा हो या हो गुलशनक्यूँ बे-निशाँ रहे वो तेरा जो बे-निशाँ है
हैरत शाह वारसी
शे'र
ख़ुशी से चोट खाने का मज़ा या कैफ़-ए-जाँ-सोज़ीकोई जाँ-सोज़ परवाना या कोई दिल-जला जाने
बेख़ुद सुहरावरदी
शे'र
लाया तुम्हारे पास हूँ या पीर अल-ग़ियासकर आह के क़लम से मैं तहरीर अल-ग़ियास