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शे'र
क़िस्मत जागे तो हम सोएँ क़िस्मत सोए तो हम जागेंदोनों ही को नींद आए जिसमें कब ऐसी रातें होती हैं
आरज़ू लखनवी
शे'र
कूचे में तिरे ऐ जान-ए-ग़ज़ल ये राज़ खुला हम पर आ करग़म भी तो इनायत है तेरी हम ग़म का मुदावा भूल गए
अब्दुल हादी काविश
शे'र
हम में और उन में मोहब्बत या ख़ुदा ऐसी तो होजो सुने वो बोल उट्ठे मेहर-ओ-वफ़ा ऐसी तो हो
कैफ़ी हैदराबादी
शे'र
शाह नसीर
शे'र
न छेड़ ऐ हम-नशीं कैफ़ियत-ए-सहबा के अफ़्सानेशराब-ए-बे-ख़ुदी के मुझ को साग़र याद आते हैं