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शे'र
निकल कर ज़ुल्फ़ से पहुँचूँगा क्यूँकर मुसहफ़-ए-रुख़ परअकेला हूँ अँधेरी रात है और दूर मंज़िल है
अकबर वारसी मेरठी
शे'र
कूचे में तिरे ऐ जान-ए-ग़ज़ल ये राज़ खुला हम पर आ करग़म भी तो इनायत है तेरी हम ग़म का मुदावा भूल गए
अब्दुल हादी काविश
शे'र
शाह नसीर
शे'र
न छेड़ ऐ हम-नशीं कैफ़ियत-ए-सहबा के अफ़्सानेशराब-ए-बे-ख़ुदी के मुझ को साग़र याद आते हैं
हसरत मोहानी
शे'र
या तू ने नज़र ख़ीरा कर दी ऐ बर्क़-ए-तजल्ली या हम हीदीदार में अपनी आँखों का एहसान उठाना भूल गए
कामिल शत्तारी
शे'र
बा हम: ख़ूबरूईयम आ‘शिक़-ए-रू-ए-कीस्तमरुस्त: ज़े-दाम-ए-जिस्म-ओ-जाँ बस्त:-ए-मू-ए-कीस्तम
शाह नियाज़ अहमद बरेलवी
शे'र
हम गिरफ़्तारों को अब क्या काम है गुलशन से लेकजी निकल जाता है जब सुनते हैं आती है बहार