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शे'र
तुम्हारे दर पे आया ‘आफ़ताब’ उसकी जो मुश्किल हैकरो जल्दी से आसां, हज़रत-ए-ख़्वाजा मुईनुद्दीं
शाह आलम सानी
शे'र
फ़स्ल-ए-गुल आई या अजल आई क्यों दर-ए-ज़िंदाँ खुलता हैया कोई वहशी और आ पहुंचा या कोई क़ैदी छूट गया
फ़ानी बदायूँनी
शे'र
मोहब्बत में सरापा आरज़ू-दर-आरज़ू मैं हूँतमन्ना दिल मिरा है और मिरे दिल की तमन्ना तू
मुज़्तर ख़ैराबादी
शे'र
सदा ही मेरी क़िस्मत जूँ सदा-ए-हल्क़ा-ए-दर हैअगर मैं घर में जाता हूँ तो वो बाहर निकलता है