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शे'र
निकल कर ज़ुल्फ़ से पहुँचूँगा क्यूँकर मुसहफ़-ए-रुख़ परअकेला हूँ अँधेरी रात है और दूर मंज़िल है
अकबर वारसी मेरठी
शे'र
मुजस्सम सूरत-ए-ग़म हूँ सरापा हसरत-ए-दिल हूँन मैं ज़िंदों में दाख़िल हूँ न मैं मुर्दों में शामिल हूँ
कौसर ख़ैराबादी
शे'र
मिरे क़ातिल की जल्दी ने मुझे नाकाम ही रखातमन्ना देखने की भी न निकली तेज़-दस्ती में
मुज़्तर ख़ैराबादी
शे'र
उस बुलबुल-ए-असीर की हसरत पे दाग़ हूँमर ही गई क़फ़स में सुनी जब सदा-ए-गुल
ख़्वाजा रुक्नुद्दीन इश्क़
शे'र
ख़ून-ए-दिल जितना था सारा वक़्फ़-ए-हसरत कर दियाइस क़दर रोया कि मेरी आँख में आँसू नहीं
मुज़्तर ख़ैराबादी
शे'र
क़ाबू में दिल-ए-नाकाम रहे राज़ी-ब-रज़ा इंसान रहेहंगाम-ए-मुसीबत घबराना इक तर्ह की ये नादानी है
अहक़र बिहारी
शे'र
अब तो मैं राहरव-मुल्क-ए-अ’दम होता हूँतिरा हर हाल में हाफ़िज़ है ख़ुदा मेरे बा’द
मौलाना अ’ब्दुल क़दीर हसरत
शे'र
न आएँगे वो 'हसरत' इंतिज़ार-ए-शौक़ में यूँ-हींंगुज़र जाएँगे अय्याम-ए-बहार आहिस्तः आहिस्तः
हसरत मोहानी
शे'र
फ़रोग़-ए-हसरत-ओ-ग़म से जिगर में दाग़ रखता हूँमिरे गुलशन की ज़ीनत दौर-ए-हंगाम-ए-ख़िज़ाँ तक है