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शे'र
निकल कर ज़ुल्फ़ से पहुँचूँगा क्यूँकर मुसहफ़-ए-रुख़ परअकेला हूँ अँधेरी रात है और दूर मंज़िल है
अकबर वारसी मेरठी
शे'र
जिस्म का रेशा रेशा मचले दर्द-ए-मोहब्बत फ़ाश करेइ’शक में 'काविश' ख़ामोशी तो सुख़नवरी से मुश्किल है
अब्दुल हादी काविश
शे'र
आ'शिक़-ए-जाँ-निसार को ख़ौफ़ नहीं है मर्ग कातेरी तरफ़ से ऐ सनम जौर-ओ-जफ़ा जो हो सो हो
मीर मोहम्मद बेदार
शे'र
क्या ग़म जो टूट जाएँ जिगर, जाँ, कलेजा, दिलपर तेरी चाह की न तमन्ना शिकस्त हो
सुलेमान शिकोह गार्डनर
शे'र
बेदम शाह वारसी
शे'र
ख़ुशी से चोट खाने का मज़ा या कैफ़-ए-जाँ-सोज़ीकोई जाँ-सोज़ परवाना या कोई दिल-जला जाने
बेख़ुद सुहरावरदी
शे'र
वो ऐ 'सीमाब' क्यूँ सर-ग़श्तः-ए-तसनीम-ओ-जन्नत होमयस्सर जिस को सैर-ए-ताज और जमुना का साहिल है