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शे'र
पढ़ पढ़ इ’ल्म हज़ार कताबाँ आ’लिम होए भारे हूहर्फ़ इक इ’श्क़ दा पढ़ न जाणन भुल्ले फिरन विचारे हू
सुल्तान बाहू
शे'र
इतनी बात न बूझी लोगाँ आप निभाता करी सो कुएइ’ल्म क़ुदरत जिस थोरा होवे की मजबूर विचारा होए