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ग़ैर का शिकवा क्यूँकर रहता दिल में जब उम्मीदें थींअपना फिर भी अपना था बेगाना फिर बेगाना था
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ग़ैर का शिकवा क्यूँकर रहता दिल में जब उम्मीदें थींअपना फिर भी अपना था बेगाना फिर बेगाना था