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अमीर मीनाई
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अमीर मीनाई
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ढ़ूंढ़े असरार-ए-ख़ुदा दिल ने जो अंधा बन कररह गया आप ही पहलू में मुअ’म्मा बन कर
इम्दाद अ'ली उ'ल्वी
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कूचे में तिरे ऐ जान-ए-ग़ज़ल ये राज़ खुला हम पर आ करग़म भी तो इनायत है तेरी हम ग़म का मुदावा भूल गए
अब्दुल हादी काविश
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बाँद कर गुलनार चीरा गुल-बदन जाता है बाग़आज ख़ातिर में तिरे बुलबुल की मिस्मारी है क्या
तुराब अली दकनी
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कर गरेबाँ चाक अपना गुल नमत भुहीं पर गिरादर्द-ए-दिल बुलबुल सौं सुन कर ओ गुल-ए-ख़ंदाँ मिरा
तुराब अली दकनी
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ऐ 'तुराब' जब गुल-बदन के दर्द सूँ गिर्यां कियादामन-ए-गुल पर मिरा हर अश्क दुर्दाना हुआ
तुराब अली दकनी
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कामिल शत्तारी
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उ’ज़्र कुछ मुझको नहीं क़ातिल तू बिस्मिल्लाह करसर ये हाज़िर है मगर एहसान मेरे सर न हो
रज़ा फ़िरंगी महल्ली
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कूचा-ए-क़ातिल में मुझको घेर कर लाई है येजीते जी जन्नत में पहुंचा दे क़ज़ा ऐसी तो हो
कैफ़ी हैदराबादी
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कूचा-ए-क़ातिल में मुझको घेर कर लाई है येजीते जी जन्नत में पहुंचा दे क़ज़ा ऐसी तो हो
कैफ़ी हैदराबादी
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अगर चाहूँ निज़ाम-ए-दहर को ज़ेर-ओ-ज़बर कर दूँमिरे जज़्बात का तूफ़ाँ ज़मीं से आसमाँ तक है