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शे'र
तिश्ना-लब छोड़ा मुझे क़ातिल ने वक़्त-ए-इम्तिहाँरूह मेरी आब-ए-ख़ंजर को तरसती रह गई
मुज़्तर ख़ैराबादी
शे'र
हमारी आरज़ू दिल की तुम्हारी जुम्बिश-ए-लब परतमन्ना अब बर आती है अगर कुछ लब-कुशा तुम हो
राक़िम देहलवी
शे'र
शम्स साबरी
शे'र
वो उ’रूज-ए-माह वो चाँदनी वो ख़मोश रात वो बे-ख़ुदीवो तसव्वुरात की सरख़ुशी तिरे साथ राज़-ओ-नियाज़ में
सीमाब अकबराबादी
शे'र
रफ़्त यार व आरज़ू-ए-ऊ ज़े-जान-ए-मन न-रफ़्तनक़्श-ए-ऊ अज़ पेश-ए-चश्म-ए-ख़ूँ-फ़िशान-ए-मन न-रफ़्त
अमीर ख़ुसरौ
शे'र
हम तल्ख़ी-ए-क़िस्मत से हैं तिश्ना-लब-ए-बादागर्दिश में है पैमाना पैमाने से क्या कहिए
सीमाब अकबराबादी
शे'र
ग़ैर मुँह तकता रहा मैं अर्ज़-ए-मतलब कर चुकामुझ से उन से आँखों आँखों में इशारः हो गया
संजर ग़ाज़ीपुरी
शे'र
मेरे अ'र्ज़-ए-ग़म पे वो कहना किसी का हाए हाएशिकवा-ए-ग़म शेवा-ए-अहल-ए-वफ़ा होता नहीं
जिगर मुरादाबादी
शे'र
मोहब्बत में सरापा आरज़ू-दर-आरज़ू मैं हूँतमन्ना दिल मिरा है और मिरे दिल की तमन्ना तू
मुज़्तर ख़ैराबादी
शे'र
हिज्र की जो मुसीबतें अ’र्ज़ कीं उस के सामनेनाज़-ओ-अदा से मुस्कुरा कहने लगा जो हो सो हो