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शे'र
जल ही गया फ़िराक़ तू आतिश से हिज्र कीआँखों में मिरी रह न सका यारो इंतिज़ार
ख़्वाजा रुक्नुद्दीन इश्क़
शे'र
शैदा-ए-रू-ए-गुल न हैं शैदा-ए-क़द्द-ए-सर्वसय्याद के शिकार हैं इस बोसताँ में हम
ख़्वाजा हैदर अली आतिश
शे'र
कू-ब-कू फिरता हूँ मैं ख़ाना-ख़राबों की तरहजैसे सौदे का तेरे सर में मेरे घर हो गया
ख़्वाजा हैदर अली आतिश
शे'र
अदब से सर झुका कर क़ासिद उस के रू-ब-रू जानानिहायत शौक़ से कहना पयाम आहिस्ता आहिस्ता
अज़ीज़ सफ़ीपुरी
शे'र
मोहब्बत में जुदाई का मज़ा 'मुज़्तर' न जाने दूँवो बुलबुल हूँ कि गुल पाऊँ तो पत्ता दरमियाँ रक्खूँ
मुज़्तर ख़ैराबादी
शे'र
न जाने कौन से यूसुफ़ का जल्वा मुझ में पिन्हाँ हैज़ुलेख़ा आज तक करती है 'मुज़्तर' इल्तिजा मेरी
मुज़्तर ख़ैराबादी
शे'र
बहादुर शाह ज़फ़र
शे'र
ख़ुदा जाने मिरी मिट्टी ठिकाने कब लगे 'मुज़्तर'बहुत दिन से जनाज़ा कूचा-ए-क़ातिल में रक्खा है
मुज़्तर ख़ैराबादी
शे'र
ख़ुदा जाने मिरी मिट्टी ठिकाने कब लगे 'मुज़्तर'बहुत दिन से जनाज़ा कूचा-ए-क़ातिल में रक्खा है