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शे'र
इजाज़त हो तो हम इस शम्अ'-ए-महफ़िल को बुझा डालेंतुम्हारे सामने ये रौशनी अच्छी नहीं लगती
पुरनम इलाहाबादी
शे'र
महफ़िल इ’श्क़ में जो यार उठे और बैठेहै वो मलका कि सुबुक-बार उठे और बैठे
अ’ब्दुल रहमान एहसान देहलवी
शे'र
ऐ ग़म मुझे याँ अहल-ए-तअय्युश ने है घेराइस भीड़ में तू ऐ मिरे ग़म-ख़्वार कहाँ है
अ’ब्दुल रहमान एहसान देहलवी
शे'र
बहार आई है गुलशन में वही फिर रंग-ए-महफ़िल हैकिसी जा ख़ंदा-ए-गुल है कहीं शोर-ए-अ’नादिल है
शम्स फ़िरंगी महल्ली
शे'र
बहार आई है गुलशन में वही फिर रंग-ए-महफ़िल हैकिसी जा ख़ंदा-ए-गुल है कहीं शोर-ए-अ’नादिल है