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शे'र
क्या इन आहों से शब-ए-ग़म मुख़्तसर हो जाए गीये सह सेहर होने की बातें हैं सेहर हो जाए गी
क़मर जलालवी
शे'र
हुकूमत के मज़ालिम जब से इन आँखों ने देखे हैंजिगर हम बम्बई को कूचा-ए-क़ातिल समझते हैं
जिगर मुरादाबादी
शे'र
उन को बुत समझा था या उन को ख़ुदा समझा था मैंहाँ बता दे ऐ जबीन-ए-शौक़ क्या समझा था मैं
बह्ज़ाद लखनवी
शे'र
उन को बुत समझा था या उन को ख़ुदा समझा था मैंहाँ बता दे ऐ जबीन-ए-शौक़ क्या समझा था मैं
बह्ज़ाद लखनवी
शे'र
हुआ आईना से इज़हार उन का रू-ए-ज़ेबा हैबना मुम्किन है वाजिब से जो शनवा है वो गोया है