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और हैं जिन को है ख़ब्त-ए-इश्क़-ए-हूरान-ए-जिनाँहम को सौदा-ए-हवा-ए-गुलशन-ए-जन्नत नहीं
और हैं जिन को है ख़ब्त-ए-इ'श्क़-ए-हूरान-ए-जिनाँहम को सौदा-ए-हवा-ए-गुलशन-ए-जन्नत नहीं
सब कुछ ख़ुदा ने मुझ को दिया 'अर्श' बे-तलबदुख़्तर की आरज़ू न तमन्ना पिसर की है
ऐ 'अर्श' आओ ख़ाक में दिल्ली के सो रहेंमिट कर भी ख़्वाब-गाह ये अहल-ए-हुनर की है
दिल-ओ-ग़म में और सीना-ओ-दाग़ मेंरिफ़ाक़त का याँ अहद-ओ-पैमान है
'बेदम' तुम्हारी आँखें हैं क्या अर्श का चराग़रौशन किया है नक़्श-ए-कफ़-ए-पा-ए-यार ने
फिर वो आ जाता किसी दिन क़ब्र परइक निशान-ए-बे-निशानी और है
मोरे पिया घर आएऐ री सखी मोरे पिया घर आए
लिए फिरती है अश्कों की रवानीरवाँ हूँ कश्ती-ए-आब-ए-रवाँ पर
वो मजनूँ की तस्वीर पर पूछनातिरी किस के ग़म में ये सूरत हुई
गले आ के मिल लीजिए ईद हैज़माना हुआ एक मुद्दत हुई
स्याही तीरा-बख़्ती की हमारीशब-ए-ग़म बन गई है आसमाँ पर
दर्द की सूरत उठा आँसू की सूरत गिर पड़ाजब से वो हिम्मत नहीं किसी बल नहीं ताक़त नहीं
तुम क़ब्र पर आए हो मिरी फूल चढ़ानेमुझ पर है गिराँ साया-ए-बर्ग-ए-गुल-ए-तर भी
ग़म-ए-इ’श्क़ से सरगिराँ और भी हैंजहाँ हम हैं शायद वहाँ और भी हैं
तू वो गुल-ए-रा'ना है जो आ जाए चमन मेंझूमा करें इक वज्द के आलम में शजर भी
उस ने लिक्खा ख़त में ये शिकवा न करना जौर काहम ने लिख भेजा है इतना अपनी ये आदत नहीं
हुआ गुल मिरी ज़िंदगी का चराग़नुमायाँ जो शाम-ए-मुसीबत हुई
गुल-गीर का ख़तर तो पतंगों की है ख़लिशआफ़त में जान शाम से शम-ए-सहर की है
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