परिणाम "arsh-e-ilaahii"
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ऐ 'अर्श' आओ ख़ाक में दिल्ली के सो रहेंमिट कर भी ख़्वाब-गाह ये अहल-ए-हुनर की है
सब कुछ ख़ुदा ने मुझ को दिया 'अर्श' बे-तलबदुख़्तर की आरज़ू न तमन्ना पिसर की है
आरज़ू थी कर्बला में दफ़्न होते 'अर्श' हमदेखते मर कर भी रौज़ा हज़रत-ए-शब्बीर का
लिए फिरती है अश्कों की रवानीरवाँ हूँ कश्ती-ए-आब-ए-रवाँ पर
वो मजनूँ की तस्वीर पर पूछनातिरी किस के ग़म में ये सूरत हुई
गले आ के मिल लीजिए ईद हैज़माना हुआ एक मुद्दत हुई
स्याही तीरा-बख़्ती की हमारीशब-ए-ग़म बन गई है आसमाँ पर
दर्द की सूरत उठा आँसू की सूरत गिर पड़ाजब से वो हिम्मत नहीं किसी बल नहीं ताक़त नहीं
तू वो गुल-ए-रा'ना है जो आ जाए चमन मेंझूमा करें इक वज्द के आलम में शजर भी
उस ने लिक्खा ख़त में ये शिकवा न करना जौर काहम ने लिख भेजा है इतना अपनी ये आदत नहीं
तुम क़ब्र पर आए हो मिरी फूल चढ़ानेमुझ पर है गिराँ साया-ए-बर्ग-ए-गुल-ए-तर भी
फिर वो आ जाता किसी दिन क़ब्र परइक निशान-ए-बे-निशानी और है
गुल-गीर का ख़तर तो पतंगों की है ख़लिशआफ़त में जान शाम से शम-ए-सहर की है
घेरे हुए कश्ती को है तूफ़ाँ भी भँवर भीहासिल है मुझे घर भी यहाँ लुत्फ़-ए-सफ़र भी
वो लोग मंज़िल-ए-पीरी में हैं जो आए हुएख़याल-ए-क़ब्र में बैठे हैं सर झुकाए हुए
न होती दिल में उल्फ़त अपनी क्यूँ क़ातिल के अबरू कीकि मुझ को तो क़तील-ए-ख़ंजर-ए-सफ़्फ़ाक होना था
हुआ गुल मिरी ज़िंदगी का चराग़नुमायाँ जो शाम-ए-मुसीबत हुई
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