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शे'र
मुज़्तर ख़ैराबादी
शे'र
मोहब्बत में सरापा आरज़ू-दर-आरज़ू मैं हूँ
तमन्ना दिल मिरा है और मिरे दिल की तमन्ना तू
मुज़्तर ख़ैराबादी
शे'र
'मुज़्तर' मुझे चाहत में सज्दों की ज़रूरत क्या
ख़ाक-ए-दर-ए-जानाँ ने क़िस्मत मिरी चमका दी
मुज़्तर ख़ैराबादी
शे'र
क़नाअत दूसरे के आसरे का नाम है 'मुज़्तर'
ख़ुदा है जो कोई हद्द-ए-तवक्कुल से निकल आया
मुज़्तर ख़ैराबादी
शे'र
मोहब्बत में जुदाई का मज़ा 'मुज़्तर' न जाने दूँ
वो बुलबुल हूँ कि गुल पाऊँ तो पत्ता दरमियाँ रक्खूँ
मुज़्तर ख़ैराबादी
शे'र
क्या कहूँ क्या ला-मकाँ में उ’म्र 'मुज़्तर' काट दी
बे-ख़ुदी ने जिस जगह रखा वहाँ रहना पड़ा
मुज़्तर ख़ैराबादी
शे'र
ख़ुदा जाने मिरी मिट्टी ठिकाने कब लगे 'मुज़्तर'
बहुत दिन से जनाज़ा कूचा-ए-क़ातिल में रक्खा है
मुज़्तर ख़ैराबादी
शे'र
ख़ुदा जाने मिरी मिट्टी ठिकाने कब लगे 'मुज़्तर'
बहुत दिन से जनाज़ा कूचा-ए-क़ातिल में रक्खा है
मुज़्तर ख़ैराबादी
शे'र
ख़ुदा जाने मिरी मिट्टी ठिकाने कब लगे 'मुज़्तर'
बहुत दिन से जनाज़ः कूचा-ए-क़ातिल में रक्खा है
मुज़्तर ख़ैराबादी
शे'र
हिज्र की जो मुसीबतें अ’र्ज़ कीं उस के सामने
नाज़-ओ-अदा से मुस्कुरा कहने लगा जो हो सो हो