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शे'र
अभी क्या है ‘क़मर’ उन की ज़रा नज़रें तो फिरने दोज़मीं ना-मेहरबाँ होगी फ़लक ना-मेहरबाँ होगा
क़मर जलालवी
शे'र
क्या इन आहों से शब-ए-ग़म मुख़्तसर हो जाए गीये सह सेहर होने की बातें हैं सेहर हो जाए गी
क़मर जलालवी
शे'र
दहन है छोटा कमर है पतली सुडौल बाज़ू जमाल अच्छातबीअत अपनी भी है मज़े की पसंद अच्छी ख़याल अच्छा
शाह अकबर दानापूरी
शे'र
मनम आँ माह-ए-औज-ए-हुस्न दर बुर्ज-ए-ज़मींं-ताबाँकि हर शब मी-शवंद अज़ आसमाँ अंजुम निसार-ए-मन
इब्राहीम आजिज़
शे'र
आज तो 'क़ैसर'-ए-हज़ीं ज़ीस्त की राह मिल गईआ के ख़याल-ओ-ख़्वाब में शक्ल दिखा गया कोई
क़ैसर शाह वारसी
शे'र
दिखाइए आज रू-ए-ज़ेबा उठाइए दरमियाँ से पर्दाकहाँ से अब इंतिज़ार-ए-फ़र्दा यही तो सुनते हैं उम्र-भर से