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शे'र
मिल गए बाहम ख़ुदा के फ़ज़्ल से बा'द अज़ फ़नाउस को अच्छा क्या कहें हम सर-बसर अच्छा हुआ
मर्दान सफ़ी
शे'र
मैं हाथ में हूँ बाद के मानिंद पर-ए-काहपाबंद न घर का हूँ न मुश्ताक़ सफ़र का
ख़्वाजा रुक्नुद्दीन इश्क़
शे'र
अकबर वारसी मेरठी
शे'र
ख़ुदा से डर ज़रा 'कौसर' कि तू तो खोए बैठा हैसरापा दीन-ओ-ईमान इक बुत-ए-काफ़िर की चाहत में
कौसर ख़ैराबादी
शे'र
रिंद हूँ ब-ख़ुदा मगर ‘बेख़ुद’ हूँ बे-ख़ुदा नहींतुम ही मेरे हो पेशवा या’नी कि ना-ख़ुदा भी तुम
बेख़ुद सुहरावर्दी
शे'र
कर दिया है बे-ख़ुदी ने आज इस क़ाबिल मुझेअपने पहलू में लिए लेती है ख़ुद मंज़िल मुझे
पंडित शाएक़ वारसी
शे'र
चु नै ख़ाली शुदम अज़ आरज़ूहा लैक इ'श्क़-ए-ऊब-गोशम मी-दमद हर्फ़े कि मन नाचार मी-नालम