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गर बड़े मर्द हो तो ग़ैर को याँ जा दीजेउस को कह देखिए कुछ या मुझे उठवा दीजे
सोज़िश-ए-दिल किसी तर्ह न गईख़ूब आँसू बहा के देख लिया
जिस की गर्दन में है फंदा वही इंसान बड़ासूलियों से यहाँ पैमाइश-ए-क़द होती है
दिल अपना मुहम्मद का काशाना बना डालाउजड़े हुए इस घर को शाहाना बना डाला
कुछ फ़िक्र तुम्हें उक़्बा की नहीं 'अहक़र' ये बड़ी नादानी हैदुनिया की ख़ुशी क्या ईज़ा क्या ये हादिस है वो फ़ानी है
बड़ी दरगाह का साइल हूँ 'हसरत'बड़ी उम्मीद है मेरी बड़ा दिल
बड़ी चीज़ आँख है इंसान पहले आँख पहचानेनज़र का ताड़ जाना भी तो आधी 'ऐब दानी है
जबीन-ए-यार से अफ़शाँ की देखी ज़र्रा अफ़्शानीख़ुशी के फूल झड़ते हैं चराग़-ए-माह-ए-अनवर से
मेहर-ए-ख़ूबाँ ख़ाना-अफ़रोज़-ए-दिल-अफ़सुर्दः हैशो'ला आब-ए-ज़ि़ंदगानी-ए-चराग़-ए-मुर्दः है
ऐ निकहत-ए-गुल परी ही रह तूआना है उसी के पास मुझ को
ऐ शम-ए-दिल-अफ़रोज़ शब-तार-मोहब्बततुझ से ही है ये गर्मी-ए-बाज़ार-ए-मोहब्बत
ऐ बहार-ए-गुलशन-ए-नाज़-ओ-नज़ाकत हर तरफ़तेरे आने से हुई है और भी बुस्ताँ में धूम
ऐ बुताँ मोहतरम रखो उस कोकहते हैं ख़ाना-ए-ख़ुदा दिल को
ऐ मियाँ गुल तो खिल चुके प कभूग़ुंचा-ए-दिल मिरा भी वा होगा
आह ऐ यार क्या करूँ तुझ बिननाला-ए-ज़ार क्या करूँ तुझ बिन
बड़े ख़ुलूस से माँगी थी रौशनी की दुआबढ़ा कुछ और अँधेरा चराग़ जलने से
बहार-ए-गुलशन-ए-अय्याम हूँ मैंसहर-ए-नूर व सवाद-ए-शाम हूँ मैं
देख ऐ चमन-ए-हुस्न तुझे बाग़ में ख़ंदाँशबनम नहीं ये गुल पे ख़जालत से अरक़ है
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