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शे'र
बाग़ से दौर-ए-ख़िज़ाँ सर जो टपकता निकला
क़ल्ब-ए-बुलबुल ने ये जाना मेरा काँटा निकला
मुज़्तर ख़ैराबादी
शे'र
बाग़ से दौर-ए-ख़िज़ाँ सर जो टपकता निकला
क़ल्ब-ए-बुलबुल ने ये जाना मेरा काँटा निकला
मुज़्तर ख़ैराबादी
शे'र
मिस्ल-ए-गुल बाहर गया गुलशन से जब वो गुल-एज़ार
अश्क-ए-ख़ूनी से मेरा तन तर-ब-तर होने लगा
किशन सिंह आरिफ़
शे'र
मिस्ल-ए-गुल बाहर गया गुलशन से जब वो गुल-ए'ज़ार
अश्क-ए-ख़ूनी से मेरा तन तर-ब-तर होने लगा
किशन सिंह आरिफ़
शे'र
बाँद कर गुलनार चीरा गुल-बदन जाता है बाग़
आज ख़ातिर में तिरे बुलबुल की मिस्मारी है क्या
तुराब अली दकनी
शे'र
बुलबुल सिफ़त ऐ गुल-बदन इस बाग़ में हर सुब्ह
तेरी बहारिस्तान का दीवाना हूँ दीवाना हूँ
क़ादिर बख़्श बेदिल
शे'र
जिलाया मार कर क़ातिल ने मैं इस क़त्ल के क़ुर्बां
हुआ दाख़िल वो ख़ुद मुझ में मैं ऐसे दख़्ल के क़ुर्बां
मरदान सफ़ी
शे'र
कोई मर कर तो देखे इम्तिहाँ-गाह-ए-मोहब्बत में
कि ज़ेर-ए-ख़ंजर-ए-क़ातिल हयात-ए-जावेदाँ तक है
बेदम शाह वारसी
शे'र
मर ही गए जफ़ाओं से क़ातिल तड़प-तड़प
मैं क्या कि और कितने ही बिस्मिल तड़प-तड़प