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शे'र
बे-पिए भी सुब्ह-ए-महशर हम को लग़्ज़िश है बहुतक़ब्र से क्यूँ कर उठें बार-ए-गुनाह क्यूँ कर उठे
रियाज़ ख़ैराबादी
शे'र
बहुत ही ख़ैर गुज़री होते होते रह गई उस सेजिसे में ग़ैर समझा हूँ वो उन का पासबाँ होगा