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शे'र
चाटती है क्यूँ ज़बान-ए-तेग़-ए-क़ातिल बार बारबे-नमक छिड़के ये ज़ख़्मों में मज़ा क्यूँकर हुआ
अमीर मीनाई
शे'र
गर मिले इक बार मुझ को वो परी-वश कज-अदाउस को ज़ाहिर कर दिखाऊँ दिल का मतलब दिल की बात
किशन सिंह आरिफ़
शे'र
जफ़ा-ओ-जौर के सदक़े तसद्दुक़-बर-ज़बानी परसुनाते हैं वो लाखों बे-नुक़त इस बे-दहानी पर
कौसर ख़ैराबादी
शे'र
दीवानः शुद ज़ू इ’श्क़ हम नागह बर-आवर्द आतिशीशुद रख़्त-ए-शहरी सोख़त: ख़ाशाक-ए-ईं वीरानः हम
अमीर ख़ुसरौ
शे'र
मिलें भी वो तो क्यूँकर आरज़ू बर आएगी दिल कीन होगा ख़ुद ख़याल उन को न होगी इल्तिजा मुझ से
हसरत मोहानी
शे'र
मिलें भी वो तो क्यूँकर आरज़ू बर आएगी दिल कीन होगा ख़ुद ख़याल उन को न होगी इल्तिजा मुझ से
हसरत मोहानी
शे'र
नामा-बर ख़त दे के उस को लफ़्ज़ कुछ मत बोलियोदम-ब-ख़ुद रहियो तेरी तक़रीर की हाजत नहीं
किशन सिंह आरिफ़
शे'र
ख़फ़ा सय्याद है चीं बर जबीं गुलचीं है क्या बाइ'सबुरा किस का किया तक़्सीर की हम ने भला किस की