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शे'र
चु नै ख़ाली शुदम अज़ आरज़ूहा लैक इ'श्क़-ए-ऊब-गोशम मी-दमद हर्फ़े कि मन नाचार मी-नालम
ख़्वाजा मीर दर्द
शे'र
तुम अपनी ज़ुल्फ़ खोलो फिर दिल-ए-पुर-दाग़ चमकेगाअंधेरा हो तो कुछ कुछ शम्अ' की आँखों में नूर आए
मुज़्तर ख़ैराबादी
शे'र
जब तक एक हसीं मकीं था दिल में हर-सू फूल खिले थेवो उजड़ा तो गुलशन उजड़ा और हुआ आबाद नहीं है
बेख़ुद सुहरावरदी
शे'र
सब से हुए वो सीना-ब-सीना हम से मिलाया ख़ाली हाथई’द के दिन जो सच पूछो तो ईद मनाई लोगों ने
पुरनम इलाहाबादी
शे'र
लाया तुम्हारे पास हूँ या पीर अल-ग़ियासकर आह के क़लम से मैं तहरीर अल-ग़ियास
शाह नियाज़ अहमद बरेलवी
शे'र
जल्वे से तिरे है कब ख़ाली फल फूल फली पत्ता डालीहै रंग तिरा गुलशन गुलशन सुब्हान-अल्लाह सुब्हान-अल्लाह
अकबर वारसी मेरठी
शे'र
उन को बुत समझा था या उन को ख़ुदा समझा था मैंहाँ बता दे ऐ जबीन-ए-शौक़ क्या समझा था मैं
बह्ज़ाद लखनवी
शे'र
उन को बुत समझा था या उन को ख़ुदा समझा था मैंहाँ बता दे ऐ जबीन-ए-शौक़ क्या समझा था मैं
बह्ज़ाद लखनवी
शे'र
इतनी बात न बूझी लोगाँ आप निभाता करी सो कुएइ’ल्म क़ुदरत जिस थोरा होवे की मजबूर विचारा होए