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शे'र
मैं समझूँगा कि मेरे दाग़-ए-इस्याँ धुल गए सारेअगर आँसू तिरी चश्म-ए-तग़ाफ़ुल से निकल आया
मुज़्तर ख़ैराबादी
शे'र
ये आ’लम है ‘रियाज़’ एक एक क़तरा को तरसता हूँहरम में अब ख़ुदा जाने भरी बोतल कहाँ रख दी
रियाज़ ख़ैराबादी
शे'र
मैं हूँ एक आशिक़-ए-बे-नवा तू नवाज़ अपने पयाम सेये तिरी रज़ा पे तिरी ख़ुशी तू पुकार ले किसी नाम से
फ़ना बुलंदशहरी
शे'र
मैं हूँ एक आ’शिक़-ए-बे-नवा तू नवाज़ अपने पयाम सेये तिरी रज़ा पे तिरी ख़ुशी तू पुकार ले किसी नाम से