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क़द-ए-ख़म है गरेबाँ-गीर कंठा बन के क़ातिल कामगर बे-ताबी-ए-ज़ौक़-ए-शहादत हो तो ऐसी हो
आसी गाज़ीपुरी
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ढ़ूंढ़े असरार-ए-ख़ुदा दिल ने जो अंधा बन कररह गया आप ही पहलू में मुअ’म्मा बन कर
इम्दाद अ'ली उ'ल्वी
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चश्म नर्गिस बन गई है इश्तियाक़-ए-दीद मेंकौन कहता है कि गुलशन में तिरा चर्चा नहीं
मिरर्ज़ा फ़िदा अली शाह मनन
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तैरता है फूल बन कर बह्र-ए-ग़म में दिल मिराकिस तरह डूबे वो कश्ती जिसमें कुछ लंगर न हो
रज़ा फ़िरंगी महल्ली
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तैरता है फूल बन कर बह्र-ए-ग़म में दिल मिराकिस तरह डूबे वो कश्ती जिसमें कुछ लंगर ना हो
रज़ा फ़िरंगी महल्ली
शे'र
मोहब्बत ख़ौफ़-ए-रुस्वाई का बाइ'स बन ही जाती हैतरीक़-ए-इश्क़ में अपनों से पर्दा हो ही जाता है
मुज़्तर ख़ैराबादी
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शराब-ए-नाब तो क्या आग पानी बन के बरसे गीअगर अब्र-ए-बहार उस आतिश-ए-गुल का धुआँ होगा
रियाज़ ख़ैराबादी
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जो कुछ भी ख़ुशी से होता है ये दिल का बोझ ना बन जाएपैमान-ए-वफ़ा भी रहने दो सब झूटी बातें होती हैं
आरज़ू लखनवी
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सर-ओ-बर्ग-ए-ख़ुशी ऐ गुल-बदन तुझ बिन कहाँ मुझ कोगुलिस्तान-ए-दिल आया फ़ौज-ए-ग़म की पाएमाली में