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शे'र
वो ऐ 'सीमाब' क्यूँ सर-ग़श्तः-ए-तसनीम-ओ-जन्नत होमयस्सर जिस को सैर-ए-ताज और जमुना का साहिल है
सीमाब अकबराबादी
शे'र
चाटती है क्यूँ ज़बान-ए-तेग़-ए-क़ातिल बार बारबे-नमक छिड़के ये ज़ख़्मों में मज़ा क्यूँकर हुआ
अमीर मीनाई
शे'र
गर मिले इक बार मुझ को वो परी-वश कज-अदाउस को ज़ाहिर कर दिखाऊँ दिल का मतलब दिल की बात
किशन सिंह आरिफ़
शे'र
इ’श्क़ ने तोड़ी सर पे क़यामत ज़ोर-ए-क़यामत क्या कहिएसुनने वाला कोई नहीं रूदाद-ए-मोहब्बत क्या कहिए
जिगर मुरादाबादी
शे'र
वो सर और ग़ैर के दर पर झुके तौबा मआ'ज़-अल्लाहकि जिस सर की रसाई तेरे संग-ए-आस्ताँ तक है
बेदम शाह वारसी
शे'र
बाग़ से दौर-ए-ख़िज़ाँ सर जो टपकता निकलाक़ल्ब-ए-बुलबुल ने ये जाना मेरा काँटा निकला
मुज़्तर ख़ैराबादी
शे'र
बाग़ से दौर-ए-ख़िज़ाँ सर जो टपकता निकलाक़ल्ब-ए-बुलबुल ने ये जाना मेरा काँटा निकला
मुज़्तर ख़ैराबादी
शे'र
अदब से सर झुका कर क़ासिद उस के रू-ब-रू जानानिहायत शौक़ से कहना पयाम आहिस्ता आहिस्ता
अज़ीज़ सफ़ीपुरी
शे'र
जफ़ा-ओ-जौर के सदक़े तसद्दुक़-बर-ज़बानी परसुनाते हैं वो लाखों बे-नुक़त इस बे-दहानी पर
कौसर ख़ैराबादी
शे'र
मिरा सर कट के मक़्तल में गिरे क़ातिल के क़दमों परदम-ए-आख़िर अदा यूँ सज्दा-ए-शुकराना हो जाए
बेदम शाह वारसी
शे'र
मिरा सर कट के मक़्तल में गिरे क़ातिल के क़दमों परदम-ए-आख़िर अदा यूँ सज्दा-ए-शुकराना हो जाए
बेदम शाह वारसी
शे'र
दश्त-नवर्दी के दौरान 'मुज़फ़्फ़र' सर पर धूप रहीजब से कश्ती में बैठे हैं रोज़ घटाएँ आती हैं
मुज़फ़्फ़र वारसी
शे'र
ये आदाब-ए-मोहब्बत है तिरे क़दमों पे सर रख दूँये तेरी इक अदा है फेर कर मुँह मुस्कुरा देना