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शे'र
अब उस मंज़िल पे पहुँचा है किसी का बे-ख़ुद-ए-उल्फ़तजहाँ पर ज़िंदगी-ओ-मौत का एहसास यकसाँ है
अफ़क़र मोहानी
शे'र
शह-ए-बे-ख़ुदी ने अता किया मुझे अब लिबास-ए-बरहनगीन ख़िरद की बख़िया-गरी रही न जुनूँ की पर्दा-दरी रही
सिराज औरंगाबादी
शे'र
शम्स साबरी
शे'र
दीन-ओ-मज़हब से तिरे आशिक़ को अब क्या काम हैवो समझता ही नहीं क्या कुफ़्र क्या इस्लाम है
इरफ़ान इस्लामपुरी
शे'र
एहसास के मय-ख़ाने में कहाँ अब फिक्र-ओ-नज़र की क़िंदीलेंआलाम की शिद्दत क्या कहिए कुछ याद रही कुछ भूल गए