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शे'र
ख़ुदी ख़ुद-ए’तिमादी में बदल जाये तो बंदों कोख़ुदा से सरकशी करने की नौबत आ ही जाती है
फ़क़ीर क़ादरी
शे'र
नहीं बंदा हक़ीक़त में समझ असरार मा'नी काख़ुदी का वहम बरहम ज़न पिछे बे-ख़ुद ख़ुदाई कर
क़ादिर बख़्श बेदिल
शे'र
उसी का है रंग यासमन में उसी की बू-बास नस्तरन मेंजो खड़के पत्ता भी इस चमन में ख़याल आवाज़ आश्ना कर
अमीर मीनाई
शे'र
हम ने माना दाम-ए-गेसू में नहीं 'आसी' असीरबाग़ में नज़्ज़ारा-ए-सुम्बुल से घबराते हैं क्यूँ
आसी गाज़ीपुरी
शे'र
लैल-ओ-नहार चाहे अगर ख़ूब गुज़रे 'इ’श्क़'कर विर्द उस के नाम को तू सुब्ह-ओ-शाम का
ख़्वाजा रुक्नुद्दीन इश्क़
शे'र
फ़स्ल-ए-बहार में तो क़ैद-ए-क़फ़स में गुज़रीछूटे जो अब क़फ़स से तो मौसम-ए-ख़िज़ाँ है