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सईद वारसी
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कर गरेबाँ चाक अपना गुल नमत भुहीं पर गिरा
दर्द-ए-दिल बुलबुल सौं सुन कर ओ गुल-ए-ख़ंदाँ मिरा
तुराब अली दकनी
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हर अदा नाज़ में है नोक-चौक उस के 'फ़िराक़'
खुब गई जी में हमारे यार की बाँकी तरह
हकीम सनाउल्लाह ख़ान
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मन पाया है उस ने दिल मेरा काबा है घर अल्लाह का है
अब खोद के उस को फिकवा दे वो बुत न कहीं बुनियाद सती
ग़ुलाम नक्शबंद सज्जाद
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क़ाबू में दिल-ए-नाकाम रहे राज़ी-ब-रज़ा इंसान रहे
हंगाम-ए-मुसीबत घबराना इक तर्ह की ये नादानी है
अहक़र बिहारी
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अकबर वारसी मेरठी
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मुर्शिद मक्का तालिब हाजी का’बा इ’श्क़ बड़ाया हू
विच हुज़ूर सदा हर वेले करिए हज सवाया हू
सुल्तान बाहू
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इ’श्क़ में पूजता हूँ क़िब्ला-ओ-काबा अपना
एक पल दिल को मिरे उस के बिन आराम नहीं
शाह नियाज़ अहमद बरेलवी
शे'र
न पूछो क्यूँ मैं का'बे जा के बुत-ख़ाने चला आया
अकेला घर तो दुनिया को बुरा मालूम होता है