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शे'र
कामिल शत्तारी
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सँभल जाओ चमन वालो ख़तर है हम न कहते थेजमाल-ए-गुल के पर्दे में शरर है हम न कहते थे
वासिफ़ अली वासिफ़
शे'र
सीमाब अकबराबादी
शे'र
मुझ से लगे हैं इ'श्क़ की अ'ज़्मत को चार चाँदख़ुद हुस्न को गवाह किए जा रहा हूँ मैं
जिगर मुरादाबादी
शे'र
गरचे कैफ़ियत ख़ुशी में उस की होती है दो-चंदपर क़यामत लुत्फ़ रखती है ये झुँझलाने की तरह
ख़्वाजा रुक्नुद्दीन इश्क़
शे'र
वो चाँद सा मुँह सुर्ख़ दुपट्टा में है रख़्शाँया मेहर कहूँ जल्वा-नुमा ज़ेर-ए-शफ़क़ है
मीर मोहम्मद बेदार
शे'र
ख़ुद तुम्हें ये चाँद-सा मुखड़ा करेगा बे-हिजाबमुँह पे जब मारोगे तुम झुरमुट कताँ हो जाएगा
क़द्र बिलग्रामी
शे'र
परेशाँ किस लिए हैं चाँद से रुख़्सार पर गेसूहटा लीजे कि धुँदली चाँदनी अच्छी नहीं लगती
पुरनम इलाहाबादी
शे'र
आकाश की जगमग रातों में जब चाँद सितारे मिलते हैंदिल दे दे सनम को तू भी ये क़ुदरत के इशारे मिलते हैं
अब्दुल हादी काविश
शे'र
चाँद सा मुखड़ा उस ने दिखा कर फिर नैनाँ के बाँड़ चला करसाँवरिया ने बीच-बजरिया लूट लियो इस निर्धन को
अब्दुल हादी काविश
शे'र
सुकून-ए-मुस्तक़िल दिल बे-तमन्ना शैख़ की सोहबतये जन्नत है तो इस जन्नत से दोज़ख़ क्या बुरा होगा