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शे'र
सुब्ह नहीं बे-वज्ह जलाए लाले ने गुलशन में चराग़देख रुख़-ए-गुलनार-ए-सनम निकला है वो लाल: फूलों का
शाह नसीर
शे'र
सुब्ह नहीं बे-वज्ह जलाए लाले ने गुलशन में चराग़देख रुख़-ए-गुलनार-ए-सनम निकला है वो लाला फूलों का
शाह नसीर
शे'र
'बेदम' तुम्हारी आँखें हैं क्या अर्श का चराग़रौशन किया है नक़्श-ए-कफ़-ए-पा-ए-यार ने
बेदम शाह वारसी
शे'र
मिरी आरज़ू के चराग़ पर कोई तब्सिरा भी करे तो क्याकभी जल उठा सर-ए-शाम से कभी बुझ गया सर-ए-शाम से
अज़ीज़ वारसी देहलवी
शे'र
मिरी आरज़ू के चराग़ पर कोई तब्सिरा भी करे तो क्याकभी जल उठा सर-ए-शाम से कभी बुझ गया सर-ए-शाम से
अज़ीज़ वारसी देहलवी
शे'र
ये दिल में है जो घबराहट ये आँखों में है जो आँसूइस एहसाँ को भी बाला-ए-करम महसूस करता हूँ