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हर अदा नाज़ में है नोक-चौक उस के 'फ़िराक़'खुब गई जी में हमारे यार की बाँकी तरह
हर गुल है चाक-दामन हर ग़ुंचा दिल-ए-गिरफ्ताऐ बाग़बान-ए-क़ुदरत फ़स्ल-ए-बहार क्या है
क्या हुआ चाक गर बादबाँ हो गए और हालात ना-मेहरबाँ हो गएतेरी चश्म-ए-करम जब हो साया-फ़िगन दूर कश्ती से अपनी किनारा नहीं
गुल मुरक़्क़ा' हैं तिरे चाक-गरेबानों केशक्ल मा'शूक़ की अंदाज़ हैं दीवानों के
कर गरेबाँ चाक अपना गुल नमत भुहीं पर गिरादर्द-ए-दिल बुलबुल सौं सुन कर ओ गुल-ए-ख़ंदाँ मिरा
गुल का किया जो चाक गरेबाँ बहार नेदस्त-ए-जुनूँ लगे मिरे कपड़े उतारने
उस पर्दे में तो कितने गरेबान चाक हैंवो बे-हिजाब हों तो ख़ुदा जाने क्या न हो
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