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शे'र
फ़रोग़-ए-हसरत-ओ-ग़म से जिगर में दाग़ रखता हूँमिरे गुलशन की ज़ीनत दौर-ए-हंगाम-ए-ख़िज़ाँ तक है
वली वारसी
शे'र
उस बुलबुल-ए-असीर की हसरत पे दाग़ हूँमर ही गई क़फ़स में सुनी जब सदा-ए-गुल
ख़्वाजा रुक्नुद्दीन इश्क़
शे'र
तुम अपनी ज़ुल्फ़ खोलो फिर दिल-ए-पुर-दाग़ चमकेगाअंधेरा हो तो कुछ कुछ शम्अ' की आँखों में नूर आए
मुज़्तर ख़ैराबादी
शे'र
मैं समझूँगा कि मेरे दाग़-ए-इस्याँ धुल गए सारेअगर आँसू तिरी चश्म-ए-तग़ाफ़ुल से निकल आया