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रंग-ए-दस्त आवेज़-ए-उल्फ़त देख कहती है हिनाअब तो हाथों-हाथ सौदा तुझ से जानाँ बन गया
तेरे दर से न उठा हूँ न उठूँगा ऐ दोस्तज़िंदगी तेरे बिना ख़्वाब है अफ़्साना है
बे-ख़ुदी की यही तकमील है शायद ऐ दोस्ततू जो आता है तो मैं होश में आ जाता हूँ
बुलबुल को मुबारक हो हवा-ए-गुल-ओ-गुलशनपरवाने को सोज़-ए-दिल-ए-परवानः मुबारक
बुलबुल को मुबारक हो हवा-ए-गुल-ओ-गुलशनपरवाने को सोज़-ए-दिल-ए-परवाना मुबारक
हाजियों को हो मुबारक हज-ए-ईदआ’शिक़ों का हज-ए-अकबर और है
का'बा हो बुत-कदा हो कि वो कू-ए-दोस्त होदिल तेरा चाहे जिस में उसी घर में जा के पी
पहचानता वो अब नहीं दुश्मन को दोस्त सेकिस क़ैद से असीर-ए-मोहब्बत रिहा हुआ
वो मल के दस्त-ए-हिनाई से दिल लहू करतेहम आरज़ू को हसीं ख़ून-ए-आरज़ू करते
नज़र-अफ़ज़ोई-ए-शम-ए-तजल्ली ऐ ज़हे-क़िस्मतकहाँ बज़्म-ए-जमाल उन की कहाँ परवानगी अपनी
ऐ शम-ए-दिल-अफ़रोज़ शब-तार-मोहब्बततुझ से ही है ये गर्मी-ए-बाज़ार-ए-मोहब्बत
दिखा मुझ को दीदार ऐ गुल-एज़ारतुझे अपने बाग़-ए-इरम की क़सम
ऐ शब-ए-फ़ुर्क़त न आई तुझ को शर्मग़ैर के घर जा के मुँह काला किया
ऐ असीरान-ए-क़फ़स आने को है फ़स्ल-ए-ख़िज़ाँचार-दिन में और गुलशन की हवा हो जाएगी
ऐ बहार-ए-गुलशन-ए-नाज़-ओ-नज़ाकत हर तरफ़तेरे आने से हुई है और भी बुस्ताँ में धूम
सदक़े ऐ क़ातिल तिरे मुझ तिश्ना-ए-दीदार कीतिश्नगी जाती रही आब-ए-दम-ए-शमशीर से
मुरीद-ए-पीर-ए-मय-ख़ाना हुए क़िस्मत से ऐ नासेहन झाड़ें शौक़ में पलकों से हम क्यूँ सहन-ए-मय-ख़ाना
ऐ ज़ब्त-ए-दिल ये कैसी क़यामत गुज़र गईदीवानगी में चाक गरेबान हो गया
सर-ओ-बर्ग-ए-ख़ुशी ऐ गुल-बदन तुझ बिन कहाँ मुझ कोगुलिस्तान-ए-दिल आया फ़ौज-ए-ग़म की पाएमाली में
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