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‘असीर' आँख दिखाता अगर हमें सय्यादक़सम तू क्या क़फ़स-ए-जिस्म से निकल जाते
दिखाता इतनी तो तासीर गिर्या-ए-या'क़ूबदयार-ए-मिस्र में अंधे कुएँ उबल जाते
चराग़ ख़ूब हुआ मेरे क़ब्र पर ना जलाइधर उधर के पतंगे ग़रीब जल जाते
बहार-ए-लाला-ओ-गुल लुत्फ़-ए-सब्ज़ा-ओ-सुंबुलमज़ा था हम जो गुलिस्तान में आज-कल जाते
छटेगी कैसे 'मुज़फ़्फ़र' सियाही क़िस्मत कीनिकल तो आएगा ख़ुर्शीद रात ढलने से
काहकशाँ के ख़्वाब 'मुज़फ़्फ़र' देख रहा थाऔर बेदारी रेत के टीले पर ले आई
दश्त-नवर्दी के दौरान 'मुज़फ़्फ़र' सर पर धूप रहीजब से कश्ती में बैठे हैं रोज़ घटाएँ आती हैं
या-रहमतल-लिलआलमीनआईनः-ए-रहमत बदन साँसें चराग़-ए-इ’ल्म-ओ-फ़न
असीर-ए-काकुल-ए-ख़म-दार हूँ मैंगिरफ़्तार-ए-कमंद-ए-यार हूँ मैं
अश्कों से कहीं मिटता है एहसास-ए-तलव्वुनपानी में जो घुल जाए वो पारा नहीं होता
साहिल की आरज़ू नहीं ता'लीम-ए-मुस्तफ़ाये नाव तो रोज़ानः ही मंजधार से हुई
वो सितारा जो मिरे नाम से मंसूब हुआदीदः-ए-शब में है इक आख़िरी आँसू की तरह
डूब कर देख समुंदर हूँ मैं आवाज़ों कातालिब-ए-हुस्न-ए-समाअत मिरा सन्नाटा है
न रहा इंतिज़ार भी ऐ यासहम उमीद-ए-विसाल रखते थे
जिस की गर्दन में है फंदा वही इंसान बड़ासूलियों से यहाँ पैमाइश-ए-क़द होती है
भाग निकला था जो तूफ़ाँ से छुड़ा कर दामनसर-ए-साहिल वही डूबा हुआ कश्ती में मिला
पत्थर मुझे शर्मिंदा-ए-गुफ़तार न कर देऊँचा मिरी आवाज़ को दीवार न कर दे
दूर जा कर मिरी आवाज़ सुनी दुनिया नेफ़न उजागर मिरा आईना-ए-फ़र्दा से हुआ
क़ैदी-ए-ज़ुल्फ़ कभी गाह असीर-ए-गेसूहमने इस दिल को इसी तरह का सौदा देखा
Jashn-e-Rekhta | 13-14-15 December 2024 - Jawaharlal Nehru Stadium , Gate No. 1, New Delhi
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