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शे'र
मोहब्बत ख़ौफ़-ए-रुस्वाई का बाइ'स बन ही जाती हैतरीक़-ए-इश्क़ में अपनों से पर्दा हो ही जाता है
मुज़्तर ख़ैराबादी
शे'र
सीमाब अकबराबादी
शे'र
जान जाती है चली देख के ये मौसम-ए-गुलहिज्र-ओ-फ़ुर्क़त का मिरी जान ये गुलफ़ाम नहीं
शाह नियाज़ अहमद बरेलवी
शे'र
इ’श्क़ असानूँ लिस्याँ जाता कर के आवे धाई हूजित वल वेखां इ’श्क़ दिसीवे ख़ाली जा न काई हू
सुल्तान बाहू
शे'र
एहसास के मय-ख़ाने में कहाँ अब फिक्र-ओ-नज़र की क़िंदीलेंआलाम की शिद्दत क्या कहिए कुछ याद रही कुछ भूल गए
साग़र सिद्दीक़ी
शे'र
क़नाअत दूसरे के आसरे का नाम है 'मुज़्तर'ख़ुदा है जो कोई हद्द-ए-तवक्कुल से निकल आया
मुज़्तर ख़ैराबादी
शे'र
नूह का तूफ़ाँ तो कुछ दिन रह के आख़िर हो गयाऔर मिरी कश्ती अभी तक इश्क़ के दरिया में है
मुज़्तर ख़ैराबादी
शे'र
क़द-ए-ख़म है गरेबाँ-गीर कंठा बन के क़ातिल कामगर बे-ताबी-ए-ज़ौक़-ए-शहादत हो तो ऐसी हो