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उ’म्र-भर याद-ए-दुर्र-ए-दंदाँ में मैं गिर्यां रहाक़ब्र पर जुज़ दामन-ए-शबनम कोई चादर न हो
रज़ा फ़िरंगी महल्ली
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अभी ऐ जोश-ए-गिर्या तू ने ये सोचा नहीं शायदमोहब्बत का चमन मिन्नत-कश-ए-शबनम नहीं होता
अज़ीज़ वारसी देहलवी
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जला हूँ आतिश-ए-फ़ुर्क़त से मैं ऐ शोअ'ला-रू याँ तकचराग़-ए-ख़ाना मुझ को देख कर हर शाम जलता है
अ’ब्दुल रहमान एहसान देहलवी
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वो बहर-ए-हुस्न शायद बाग़ में आवेगा ऐ 'एहसाँ'कि फ़व्वारा ख़ुशी से आज दो दो गज़ उछलता है
अ’ब्दुल रहमान एहसान देहलवी
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कमाल-ए-इ’ल्म-ओ-तहक़ीक़-ए-मुकम्मल का ये हासिल हैतिरा इदराक मुश्किल था तिरा इदराक मुश्किल है
सीमाब अकबराबादी
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मेहर-ए-ख़ूबाँ ख़ाना-अफ़रोज़-ए-दिल-अफ़सुर्दः हैशो'ला आब-ए-ज़ि़ंदगानी-ए-चराग़-ए-मुर्दः है
मीर मोहम्मद बेदार
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ऐ ग़म मुझे याँ अहल-ए-तअय्युश ने है घेराइस भीड़ में तू ऐ मिरे ग़म-ख़्वार कहाँ है
अ’ब्दुल रहमान एहसान देहलवी
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लफ़्ज़-ए-उल्फ़त की मुकम्मल शर्ह इक तेरा वजूदआ'शिक़ी में तोड़ डालीं ज़ाहिरी सारी क़ुयूद
अज़ीज़ वारसी देहलवी
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हमें निस्बत है जन्नत से कि हम भी नस्ल-ए-आदम हैंहमारा हिस्सा 'राक़िम' है इरम में हौज़-ए-कौसर में