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शे'र
जानता हूँ मैं कि मुझ से हो गया है कुछ गुनाहदिलरुबा या बे-दिलों से दिल तुम्हारा फिर गया
किशन सिंह आरिफ़
शे'र
हम ऐसे ग़र्क़-ए-दरिया-ए-गुन: जन्नत में जा निकलेतवान-ए-लत्मः-ए-मौज-ए-शफ़ाअत हो तो ऐसी हो
आसी गाज़ीपुरी
शे'र
गुनाह करता है बरमला तू किसी से करता नहीं हया तूख़ुदा को क्या मुंह दिखाएगा तू ज़रा ऐ बे-हया हया कर
फ़क़ीर मोहम्मद गोया
शे'र
गुनाह करता है बरमला तू किसी से करता नहीं हया तूख़ुदा को क्या मुंह दिखाएगा तू ज़रा ऐ बे-हया हया कर
फ़क़ीर मोहम्मद गोया
शे'र
यही ख़ैर है कहीं शर न हो कोई बे-गुनाह इधर न होवो चले हैं करते हुए नज़र कभी इस तरफ़ कभी उस तरफ़
अकबर वारसी मेरठी
शे'र
एहसास के मय-ख़ाने में कहाँ अब फिक्र-ओ-नज़र की क़िंदीलेंआलाम की शिद्दत क्या कहिए कुछ याद रही कुछ भूल गए
साग़र सिद्दीक़ी
शे'र
जब चाहने वाले ख़त्म हुए उस वक़्त उन्हें एहसास हुआअब याद में उन की रोते हैं हँस हँस के रुलाना भूल गए
कामिल शत्तारी
शे'र
दफ़्न हूँ एहसास की सदियों पुरानी क़ब्र मेंज़िंदगी इक ज़ख़्म है और ज़ख़्म भी ताज़ा नहीं