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शे'र
तेरे नैन-ए-पुर-ख़ुमार कूँ सरमस्त-ए-बादा-नाज़या बे-ख़ुदी का जाम या सहर-ए-बला कहूँ
क़ादिर बख़्श बेदिल
शे'र
कौन है किस से करूँ दर्द-ए-दिल अपना इज़हारचाहता हूँ कि सुनो तुम तो कहाँ सुनते हो
मीर मोहम्मद बेदार
शे'र
इ’श्क़ माही दे लाइयाँ अग्गीं लग्गी कौण बुझावे हूमैं की जाणाँ ज़ात इ’श्क़ जो दर दर जा झुकावे हू
सुल्तान बाहू
शे'र
अब्र तुम्हारे कूँ जो है ब-शक्ल हिलाल-ए-ई’दमेहराब-ए-सज्दा ताअ'त-ए-अहल-ए-सफ़ा कहूँ
क़ादिर बख़्श बेदिल
शे'र
तुझ से मिलने का बता फिर कौन सा दिन आएगाई’द को भी मुझ से गर ऐ मेरी जाँ मिलता नहीं
अकबर वारसी मेरठी
शे'र
न जाने कौन से यूसुफ़ का जल्वा मुझ में पिन्हाँ हैज़ुलेख़ा आज तक करती है 'मुज़्तर' इल्तिजा मेरी
मुज़्तर ख़ैराबादी
शे'र
उन की हसरत के सिवा है कौन इस में दूसरादिल की ख़ल्वत में भी वो आ’शिक़ से शरमाते हैं क्यूँ