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जल ही गया फ़िराक़ तू आतिश से हिज्र कीआँखों में मिरी रह न सका यारो इंतिज़ार
ख़्वाजा रुक्नुद्दीन इश्क़
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बेदम शाह वारसी
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बेदम शाह वारसी
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मुझे इ’श्क़ ने ये पता दिया कि न हिज्र है न विसाल हैउसी ज़ात का मैं ज़ुहूर हूँ ये जमाल उसी का जमाल है
अज़ीज़ सफ़ीपुरी
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शम्स साबरी
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हिज्र के आलाम से छूटूं ये क़िस्मत में नहींमौत भी आने का गर वा’दा करे बावर ना हो
रज़ा फ़िरंगी महल्ली
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कहियो ऐ क़ासिद पयाम उस को कि तेरे हिज्र सेजाँ-ब-लब पहुँचा नहीं आता है तू याँ अब तलक
ख़्वाजा रुक्नुद्दीन इश्क़
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हिज्र की जो मुसीबतें अ’र्ज़ कीं उस के सामनेनाज़-ओ-अदा से मुस्कुरा कहने लगा जो हो सो हो
शाह नियाज़ अहमद बरेलवी
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चड़्ह चन्नां ते कर रुशनाई काळी रात हिजर दीशम्हा जमाल कमाल सज्जन दी आ घर बाल असाडे
मियां मोहम्मद बख़्श
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मैं वो साफ़ ही न कह दूँ जो है फ़र्क़ मुझ में तुझ मेंतिरा दर्द दर्द-ए-तन्हा मिरा ग़म ग़म-ए-ज़माना
जिगर मुरादाबादी
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हाज़िर है बज़्म-ए-यार में सामान-ए-ऐ’श सबअब किस का इंतिज़ार है 'अकबर' कहाँ हो तुम