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अब दिल का है वीरान चमन वो गुल हैं कहाँ कैसा गुलशनठहरा है क़फ़स ही अपना वतन सय्याद मुझे आज़ाद न कर
महबूब वारसी गयावी
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महबूब वारसी गयावी
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दम तोड़ रहा है देख ज़रा आ’शिक़ है तिरा कुश्ता है तिराऐ मोहनी सूरत वाले हसीं महबूब को यूँ बर्बाद न कर
महबूब वारसी गयावी
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नौ-असीर-ए-फ़ुर्क़त हूँ वस्ल-ए-यार मुझ से पूछहो गई ख़िज़ाँ दम में सब बहार मुझ से पूछ
निसार अकबराबादी
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नौ-असीर-ए-फ़ुर्क़त हूँ वस्ल-ए-यार मुझ से पूछहो गई ख़िज़ाँ दम में सब बहार मुझ से पूछ
निसार अकबराबादी
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गया फ़ुर्क़त का रोना साथ उम्मीद-ओ-तमन्ना केवो बेताबी है अगली सी न चश्म-ए-ख़ूँ-चकाँ मेरी
राक़िम देहलवी
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हम वस्ल में ऐसे खोए गए फ़ुर्क़त का ज़माना भूल गएसाहिल की ख़ुशी में मौजों का तूफ़ान उठाना भूल गए
कामिल शत्तारी
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ग़म-ए-फ़ुर्क़त है खाने को शब-ए-ग़म है तड़पने कोमिला है हम को वो जीना कि मरना इस को कहते हैं
राक़िम देहलवी
शे'र
जला हूँ आतिश-ए-फ़ुर्क़त से मैं ऐ शोअ'ला-रू याँ तकचराग़-ए-ख़ाना मुझ को देख कर हर शाम जलता है