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शे'र
दुनिया के हर इक ग़म से बेहतर है ग़म-ए-जानाँ
सौ शम्अ' बुझा कर हम इक शम्अ' जला लेंगे
फ़ना निज़ामी कानपुरी
शे'र
ग़म-ए-फ़ुर्क़त है खाने को शब-ए-ग़म है तड़पने को
मिला है हम को वो जीना कि मरना इस को कहते हैं
राक़िम देहलवी
शे'र
सदिक़ देहलवी
शे'र
जो दिल हो जल्वा-गाह-ए-नाज़ इस में ग़म नहीं होता
जहाँ सरकार होते हैं वहाँ मातम नहीं होता
कामिल शत्तारी
शे'र
जो दिल हो जल्वा-गाह-ए-नाज़ इस में ग़म नहीं होता
जहाँ सरकार होते हैं वहाँ मातम नहीं होता