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मिस्ल-ए-गुल बाहर गया गुलशन से जब वो गुल-एज़ारअश्क-ए-ख़ूनी से मेरा तन तर-ब-तर होने लगा
किशन सिंह आरिफ़
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मिस्ल-ए-गुल बाहर गया गुलशन से जब वो गुल-ए'ज़ारअश्क-ए-ख़ूनी से मेरा तन तर-ब-तर होने लगा
किशन सिंह आरिफ़
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कम नहीं गुलशन में शबनम गुल-बदन गुल-पैरहनग़ुस्ल कर मल-मल के गर आब-ए-रवाँ मिलता नहीं
अकबर वारसी मेरठी
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अब दिल का है वीरान चमन वो गुल हैं कहाँ कैसा गुलशनठहरा है क़फ़स ही अपना वतन सय्याद मुझे आज़ाद न कर
महबूब वारसी गयावी
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अहक़र बिहारी
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सर-ओ-बर्ग-ए-ख़ुशी ऐ गुल-बदन तुझ बिन कहाँ मुझ कोगुलिस्तान-ए-दिल आया फ़ौज-ए-ग़म की पाएमाली में
मीर मोहम्मद बेदार
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सुब्ह नहीं बे-वज्ह जलाए लाले ने गुलशन में चराग़देख रुख़-ए-गुलनार-ए-सनम निकला है वो लाल: फूलों का
शाह नसीर
शे'र
सुब्ह नहीं बे-वज्ह जलाए लाले ने गुलशन में चराग़देख रुख़-ए-गुलनार-ए-सनम निकला है वो लाला फूलों का
शाह नसीर
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ग़ज़ब की चाल गुलशन में चला है बाग़बाँ 'मोहसिन'इसी का ये नतीज: है कि पामाल-ए-सऊबत हूँ