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शे'र
बुलबुल सिफ़त ऐ गुल-बदन इस बाग़ में हर सुब्हतेरी बहारिस्तान का दीवाना हूँ दीवाना हूँ
क़ादिर बख़्श बेदिल
शे'र
जल्वा-ए-हर-रोज़ जो हर सुब्ह की क़िस्मत में थाअब वो इक धुँदला सा ख़्वाब-ए-दोश है तेरे बग़ैर
सीमाब अकबराबादी
शे'र
सुब्ह नहीं बे-वज्ह जलाए लाले ने गुलशन में चराग़देख रुख़-ए-गुलनार-ए-सनम निकला है वो लाल: फूलों का
शाह नसीर
शे'र
सुब्ह नहीं बे-वज्ह जलाए लाले ने गुलशन में चराग़देख रुख़-ए-गुलनार-ए-सनम निकला है वो लाला फूलों का
शाह नसीर
शे'र
नसीम-ए-सुब्ह गुलशन में गुलों से खेलती होगीकिसी की आख़िरी हिचकी किसी की दिल-लगी होगी
सीमाब अकबराबादी
शे'र
बे-पिए भी सुब्ह-ए-महशर हम को लग़्ज़िश है बहुतक़ब्र से क्यूँ कर उठें बार-ए-गुनाह क्यूँ कर उठे
रियाज़ ख़ैराबादी
शे'र
ज़ब्ह करती है जुदाई मुझ को उस की सुब्ह-ए-वस्लख़्वाब से चौंक ऐ मोअज़्ज़िन वक़्त है तकबीर का
अर्श गयावी
शे'र
शोमी-ए-क़िस्मत कहें या ख़सलत-ए-इंसाँ इसेआ के क़ाबिज़ बज़्म-ए-हस्ती पर ये मेहमाँ हो गया
गुरबचन सिंह दयाल
शे'र
इजाज़त हो तो हम इस शम्अ'-ए-महफ़िल को बुझा डालेंतुम्हारे सामने ये रौशनी अच्छी नहीं लगती
पुरनम इलाहाबादी
शे'र
फ़ना बुलंदशहरी
शे'र
शम्अ' के जल्वे भी या-रब क्या ख़्वाब था जलने वालों कासुब्ह जो देखा महफ़िल में परवाना ही परवाना था