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मुज़्तर ख़ैराबादी
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मुज़्तर ख़ैराबादी
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जाते जाते अर्सा-ए-गाह-ए-हश्र तक जो हाल होउठते उठते क़ब्र में सौ फ़ित्ना-ए-महशर उठे
रियाज़ ख़ैराबादी
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कुछ ऐसा दर्द शोर-ए-क़ल्ब-ए-बुलबुल से निकल आयाकि वो ख़ुद रंग बन कर चेहरः-ए-गुल से निकल आया
मुज़्तर ख़ैराबादी
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सुकून-ए-क़ल्ब की उम्मीद अब क्या हो कि रहती हैतमन्ना की दो-चार इक हर घड़ी बर्क़-ए-बला मुझ से
हसरत मोहानी
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'मुज़्तर' मुझे चाहत में सज्दों की ज़रूरत क्याख़ाक-ए-दर-ए-जानाँ ने क़िस्मत मिरी चमका दी
मुज़्तर ख़ैराबादी
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क़नाअत दूसरे के आसरे का नाम है 'मुज़्तर'ख़ुदा है जो कोई हद्द-ए-तवक्कुल से निकल आया
मुज़्तर ख़ैराबादी
शे'र
मोहब्बत में जुदाई का मज़ा 'मुज़्तर' न जाने दूँवो बुलबुल हूँ कि गुल पाऊँ तो पत्ता दरमियाँ रक्खूँ
मुज़्तर ख़ैराबादी
शे'र
क्या कहूँ क्या ला-मकाँ में उ’म्र 'मुज़्तर' काट दीबे-ख़ुदी ने जिस जगह रखा वहाँ रहना पड़ा
मुज़्तर ख़ैराबादी
शे'र
ख़ुदा जाने मिरी मिट्टी ठिकाने कब लगे 'मुज़्तर'बहुत दिन से जनाज़ा कूचा-ए-क़ातिल में रक्खा है