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शे'र
कूचा-ए-क़ातिल में जाकर हाथ से रक्खें तुझेओ दिल-ए-बेताब हमने इसलिए पाला नहीं
मिर्ज़ा फ़िदा अली शाह मनन
शे'र
तिरे हाथ मेरी फ़ना बक़ा तिरे हाथ मेरी सज़ा जज़ामुझे नाज़ है कि तिरे सिवा कोई और मेरा ख़ुदा नहीं
कामिल शत्तारी
शे'र
मैं हाथ में हूँ बाद के मानिंद पर-ए-काहपाबंद न घर का हूँ न मुश्ताक़ सफ़र का
ख़्वाजा रुक्नुद्दीन इश्क़
शे'र
सब से हुए वो सीना-ब-सीना हम से मिलाया ख़ाली हाथई’द के दिन जो सच पूछो तो ईद मनाई लोगों ने
पुरनम इलाहाबादी
शे'र
मिलाकर आँख दिल लेना है बाएं हाथ का करतबसिवा इस के भरे हैं बे-शुमार असरार आँखों में
कैफ़ी हैदराबादी
शे'र
अदा से हाथ उठने में गुल राखी जो हिलते हैंकलेजे देखने वालों के क्या क्या आह छिलते हैं
नज़ीर अकबराबादी
शे'र
शाख़-ए-गुल हिलती नहीं ये बुलबुलों को बाग़ मेंहाथ अपने के इशारे से बुलाती है बहार