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शे'र
तिश्ना-लब छोड़ा मुझे क़ातिल ने वक़्त-ए-इम्तिहाँरूह मेरी आब-ए-ख़ंजर को तरसती रह गई
मुज़्तर ख़ैराबादी
शे'र
हमारी आरज़ू दिल की तुम्हारी जुम्बिश-ए-लब परतमन्ना अब बर आती है अगर कुछ लब-कुशा तुम हो
राक़िम देहलवी
शे'र
शम्स साबरी
शे'र
परेशाँ किस लिए हैं चाँद से रुख़्सार पर गेसूहटा लीजे कि धुँदली चाँदनी अच्छी नहीं लगती